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Season की कविताएँ



मई का महीना by कानू बुटाणी

मई का महीना शिरु हूवा
गर्मी पसीना शिरु हूवा
गरमागरम चाय की जगह
ठंडा पीना शिरु हूवा
बाकि फलों को छोड़कर
आम खाना शिरु हूवा

रंग आकाश का नीला है
बादल न कोई साया है
सूरज तेज बरसा रहा
हवा का झोंका आया है
हर गम के आसूं का
हसी से पीना शिरु हूवा

वसन्तदूती by कानू बुटाणी

ऐ वर्षा के आगमन का 
समाचार लाये , हर दिल छूती 
स्वागत कर रही नाच उड़कर 
सारे आकाश में वसन्तदूती 

बदलों की काली छत है छायी 
सूखे आसमान में चारों और 
पहेली कड़कती बरसाती झड़ी में 
धरती की सुगंध रही है दौर 
किस तरह यह पानी की देखो 
झरझर तरमर है टूटी 
स्वागत कर रही नाच उड़कर 
सारे आकाश में वसन्तदूती

पट पट पर मुरझाये पेड़ 
उनपर चढ़े वसन्ततिलक 
बदल जाए रंग वनो का 
बस झपकते इक पलक 
अंकुरित होये हर डाली पर 
नयी तरंग संग है फूटी 
स्वागत कर रही नाच उड़कर 
सारे आकाश में वसन्तदूती

1st June by कानू बुटानी

बरसो बदल बरसो हम बड़े तरसे 
बारिश कब बरसे 
गर्मी के मारे निकले नहीं घरसे 
बारिश कब बरसे 
१स्ट जून, बारिश आ जाओ सून 
मॉर्निंग से लेकर हो गयी नून 
सुन डूब गया आ गया मून 
तून कार्टून बस देखें हम पेरसे 
बारिश कब बरसे 

लौट आए हैं मेघा by कीर्ति पाण्डेय

लौट आए हैं मेघा अपना कर्ज चुकाने
इस धरा का जल इसी को लौटाने 
अब बरसेंगे मेघा झर झर झर 
होगी शीतल धरा यह फिर 
फिर भरेंगे नदी और नाले 
क्योंकि लौट आए हैं मेघा अपना कर्ज चुकाने

नाचेंगे मोर गाएगीं कोयल
प्रकृति भी होगी कोमल
दिखेगा प्रकृति का एक नया स्वरूप
क्योंकि लौट आए हैं मेघा अपना कर्ज चुकाने
प्रकृति का जल उसी को लौटाने


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