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Wife की कविताएँ



जोरू का गुलाम by पूजा गौतम

उसके हाथ के कंपन से
मेरी क्षुब्धता रूष्ट होती है
मैं विलोम बना
कब तक उसकी बात 
उल्टी दिशा में घुमाता रहूं

चेहरे के पसीने में
एक रुआई सी है
बेलन की ऐंठ 
मेरे विस्तृत जीवन को 
रसोईघर से झांके देखती है

जीवन पनपा मेरे अंदर
उसके अंदर नाप तोल कर
सौम्य सी प्रतिमा
मेरी ज़रूरतों का अभिप्राय निकली

मैं उसकी अर्धांगिनी बना
स्वयं लज्जित क्यूं हो?
मैं अभिप्राय हूं उसके मिलन का
उसके कटोरे में मैंने भी
आंसुओं को धोकर सुखाया है

मारो मुझे और फांसी पर लटका दो
मैंने एक औरत की पीड़ा खाई है।।


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