मुकाम
क़लम ने आज गीतों का क़ाफ़िया तोड़ दिया मेरा इश्क़ यह किस मुकाम पर आ गया है देख नज़र वाले, तेरे सामने बैठी हूँ मेरे हाथ से हिज्र का काँटा निकाल दे जिसने अँधेरे के अलावा कभी कुछ नहीं बुना वह मुहब्बत आज किरणें बुनकर दे गयी उठो, अपने घड़े से पानी का एक कटोरा दो राह के हादसे मैं इस पानी से धो लूंगी...