मैं न चुप हूँ न गाता हूँ
सवेरा है मगर पूरब दिशा में घिर रहे बादल रूई से धुंधलके में मील के पत्थर पड़े घायल ठिठके पाँव ओझल गाँव जड़ता है न गतिमयता स्वयं को दूसरों की दृष्टि से मैं देख पाता हूं न मैं चुप हूँ न गाता हूँ समय की सदर साँसों ने चिनारों को झुलस डाला, मगर हिमपात को देती चुनौती एक दुर्ममाला, बिखरे नीड़, विहँसे चीड़, आँसू हैं न मुस्कानें, हिमानी झील के तट पर अकेला गुनगुनाता हूँ। न मैं चुप हूँ न गाता ह