तुम..
कभी अधजगे से सोये हैं कभी ख़्वाबों में रोयें हैं, हंसाती है तेरी मुस्कान कमी तेरी रुलाती है, हमें फूलों कि चाहत है किसी ख़ुशबू में खोये हैं, सभी मालियों ने तो हैं, तोड़े फूल डालों से हमें फूलों कि चाहत है हमने माले पिरोयें हैं, हमने भी मोहब्बत में कभी यूँ,रूठकर खुदसे, हक़ीक़त और ख़्वाबों कि इस क़ुरबत को संजोये हैं।।
मन के उस पार
मेरे मन के इस पार, मेरे सोच के भीतर एक किताब है, जिसमें चार पन्ने हैं और, उम्मीद के मज़बूत धागे से तुरपाई की हुई मोटी लाल दफ़्ती पहले पन्ने पर ख़्वाहिशें हैं जैसे सब के होती हैं, ख़्वाहिशों में एक मुकाम है चंद सीढ़ियां हैं, एक दरवाज़ा है एक ताला है, और चाभियाँ कई, दूसरा पन्ना खाली है, हाथों में स्याही है, मन में ख़्वाब हैं, और कुछ लिखने की चाहत, तीसरे पन्ने को, मैंने कोरा छोड़ा है, जिसमें कभी किसी का ज़िक्र नहीं होगा, क्योंकि बाकी चीज़ों का, नया आधार मन के उस पार, और चौथा पन्ना जो किताब का अंत है, वो कई नई कहानियों की शुरुआत दफ़्ती के दायीं ओर दो शब्द हैं दोनों शब्दों में पन्नों का फासला है शुरुआत का शब्द अधूरा है पर पन्नों के फासलों से अंत पूरा है। और, मन के उस पार एक तस्वीर है कई झूठी सच्ची बातों का ज़िक्र चंद शब्द, मधुर आवाज, मासूम चेहरा प्यार और तुम।।
तुम !!❤︎
ये कम उम्र की मोहब्बतों में क्या होगा इश्क़ होगा फ़नकारी होगी, कभी किसी की अदाऐं रास आएंगी अदाकारी होगी, ज़ुबाँ पर होंगे चंद अक्षर के कुछ फूल ख़्वाबों में किसी के नाम की फुलवारी होगी, कभी आँखों का काजल, कभी होंठो की लाली मोहब्बत में तो हर चीज़ प्यारी होगी, एक तस्वीर को कई तलक देखकर सोचेंगे, तेरे चाहने वाले दुनिया तो तेरे आँखों से हारी होगी, खिलेंगे फ़ूल फ़िज़ाओं में, "गिरेंगे" ख़ुशबू में तेरी सूरज सी चिनगारी होगी, कुछ तेरे बारे सोचेंगे"रोयेंगे" हम जैसे ग़ज़लों में "मतले" पिरोयेंगे पर, इन सबके ख़्वाबों में तेरे हुस्न से बेदारी होगी, इस इश्क़ में किसी के रूठ जाने पर क्या होगा बस,अपने ही शब्दों से मुँहमारी होगी, और, बैठेंगे साख पर कौवे "मुन्तज़िर" खबर जब तेरे मिलने की ज़ारी होगी।।
नींद
काश, किसी रोज़, ख़ूब तेज़ हवा चले धूल उड़े, मैं उड़ जाऊँ पुरानी सारी बातें भूल तेरी गलियों में फिरसे एक बार गुज़रूँ कोई फूलों की ओर आता दिखे मैं कहीं फूलों में छुप जाऊँ, रात भर जाग कर यही ख़्वाब देखता हूँ, कोई हाँथ सिरहाने रखदे तो मैं सो जाऊँ॥
ख़्याल.
चार दीवार, 2 खिड़की, और 1 दरवाज़े का कमरा है, बायीं ओर वाली दीवार की अलमारी पर कई सौ किताबें कुछ जालों में लिपटी और कुछ नयी, पढ़े जाने का इंतज़ार कर रही है, दाहिनी दीवार एकदम सादी हैं जिसपे किसी ने पेंसिल से कुछ बहुत पहले शायद खींच दिया था, सामने वाली दीवार पर टंगी हुई घड़ी 8 मिनट लेट चल रही है, और मेरी पीठ के पीछे की दीवार मुझे दिखना नहीं चाहती रात के डेढ़ बज रहें हैं, शायद 8 मिनट ज्यादा घड़ी वाली दीवार मुझसे दूर जा रही है पीछे की दीवार से मुझे मतलब नहीं दाहिनी और सादी दीवार शायद बायीं किताबों से भरी अलमारी वाली दीवार से गले लगना चाहती है, और उसकी ओर बढ़ रही है और बीच में मैं दब जाने को तैयार चार पावों की बेड पर पैर रखे कुर्सी पर बैठा अपने ही ख़्वाबों में अपनी मौत बुन रहा हूँ।।
तवायफ़
मैं लिखता दर्द उस तवायफ़ का जो कोख में लिये एक नवजात को अपना जिस्म बेचती है मैं लिखता उसके हिस्से की बची ज़िंदगी जो आगे, कई मर्दों की आग से राख होगी मैं लिखता फ़र्श पर पड़ी सिगरेट की राख को जिसमें हज़ारों पैरों के निशान और एक औरत के बाल उलझे पड़े हैं मैं लिखता उस कपड़े की चीर देखकर जो नंगे स्तनों के गहरे घाव पर बँधा है जिसके माँस के टुकड़े किसी नाख़ून में मैल के साथ धँसे हैं मैं लिखता दीवार पर पड़े ख़ून के धब्बे देखकर जिसपर हर रोज़ पान थूका जाता है पर खून के धब्बे आज भी गहरे हैं लाल हैं जिसपर मैं लिखता अगर किसी तवायफ़ की कोख से जन्म लेता पर मैं या कोई, नहीं लिखता क्यों??