गुफ़्तगू
जिंदगी में ज़्यादा कुछ नहीं चाहिए बस एक दिन जो सिर्फ़ पहाड़ों को देखते हुए गुज़रे, एक कप चाय के साथ और ढेर सारी कहानियाँ जिसमें छिपी हो एक गुफ़्तगू कहीं सूखी नदियों की बात हो तो कहीं बिखरते बादलों की और जब कोई दोस्त पूछे "तुम कैसे हो" तो यकीन हो कि जितना तुम बताना चाहते हो उतना ही वो सुनना बात हो अकेलेपन की, आँसुओं की, थोड़ी मुस्कराहट और ढेर सारी ख्वाहिशों की कहीं ठहरी हुई जिंदगी की तो कहीं तूफानों की और अगर कोई बोले कि काफ़ी समय हो गया है, अब घर आ जाओ तो हिम्मत हो ये बताने की कि अभी सिर्फ़ दिन शुरू हुआ है अभी तो रात लंबी है अभी तो तारों ने सिर्फ़ गुनगुना शुरू किया है धरती ने पैर थाम लिए हैं अपने कुछ आराम तो उसे भी हो जिसने सूरज की गर्मी को अपने आंचल में छिपा कर रखा है अभी तो उसकी खुशी में लहराना बाकी है