संघर्ष
ना ही रूप-सौंदर्य में कमी थी ना वाक-चातुर्य में मैं चाहती तो किसी का भी हाथ थाम सकती थी लेकिन मैंने संघर्ष चुना स्वाभिमान चुना जीवन को तपस्या बनाया ! लेकिन तुम मेरे इन गुणों को कभी देख नहीं पाओगे पुरुष प्रधान समाज में स्त्री का स्वाभिमानी होना उद्ददंडता की श्रेणी में आता है और मेरा स्वाभिमानी होना तुम्हें अखरता है अपमान लगता है मैं तुम्हारी चेतना के द्वार नहीं खोल सकती इसका प्रयत्न तुम्हारे हाथों में हैं ना ही मैं स्वयं कुछ सिद्ध करना चाहती हूं ये समय साक्षी है मेरी तपस्या का मेरे प्रेम का अगर कभी कोई मुझे पढ़ कर ये महसूस करें कि वो दुनिया के महान विचारों को पढ़ रहा है तो शायद मेरा जीवन सफल हो जाए !