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Varun Verma



वरुण वर्मा की कविताएँ


अपने दिल की सुनो

तपता है शरीर सूरज की गर्मी से 
जलता है मन उस मलाल से जो तू हो न सका अपनी मर्जी से। 
समझ नहीं आता क्या खेल है जीवन का? 
क्या ज़िन्दगी बीत जाएगी यूं ही अपनी खुदगर्जी से।।

क्या जीना सिर्फ कमाना दो वक्त की रोटी है? 
इच्छाएं तो इंसान के मन में और भी कई होती है। 
जकड़ा है तुझे शायद तेरे नुकसा-ऐ-नजार ने। 
हिम्मत कर ऐ बंदे नवाजा है तुझे भी काबिलियत से उस परवर दिगार ने।
मिलती है शोहरत अपनी मेहनत से ना किसी की अर्जी से
तपता है शरीर सूरज की गर्मी से  
जलता है मन उस मलाल में जो तू हो ना सका अपनी मर्जी से। 

नवाजा तुझे खुदा ने परिवार और रोजगार की दौलत से 
पाना चाहता है तो अब नई बुलंदियां कुदरत की रहमत से 
जैसे बीत गया अब तक वक्त उसे भूलना होगा, 
बाजू ऊपर करके परिस्थितियों से लड़ना होगा, 
रुकावटें आएंगी और रास्ता भी रुकेगा
लेकिन सच्ची मेहनत और लगन से कामयाबी का फूल भी खिलेगा।
 अब तक तो जिया फरमान ऐ जिंदगी मगर अब जियेगा अपनी मनमर्जी से।
तपता है शरीर सूरज की गर्मी से 
जलता है मन उस मलाल में जो तू हो न सका अपनी मर्जी से।
अब तक तो जिया फरमान ऐ जिंदगी मगर अब जियेगा अपनी मनमर्जी से।







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