ख़्याल. by अमन त्रिपाठी
चार दीवार, 2 खिड़की, और 1 दरवाज़े का कमरा है, बायीं ओर वाली दीवार की अलमारी पर कई सौ किताबें कुछ जालों में लिपटी और कुछ नयी, पढ़े जाने का इंतज़ार कर रही है, दाहिनी दीवार एकदम सादी हैं जिसपे किसी ने पेंसिल से कुछ बहुत पहले शायद खींच दिया था, सामने वाली दीवार पर टंगी हुई घड़ी 8 मिनट लेट चल रही है, और मेरी पीठ के पीछे की दीवार मुझे दिखना नहीं चाहती रात के डेढ़ बज रहें हैं, शायद 8 मिनट ज्यादा घड़ी वाली दीवार मुझसे दूर जा रही है पीछे की दीवार से मुझे मतलब नहीं दाहिनी और सादी दीवार शायद बायीं किताबों से भरी अलमारी वाली दीवार से गले लगना चाहती है, और उसकी ओर बढ़ रही है और बीच में मैं दब जाने को तैयार चार पावों की बेड पर पैर रखे कुर्सी पर बैठा अपने ही ख़्वाबों में अपनी मौत बुन रहा हूँ।।