आखिरी मंजिल by मिहिर प्रजापति
आज फिर एक सांस रुकी है यहां आके, फिर एक कहानी खत्म हुई यहां आके। नजाने कितने गिले हुए बहार आंखों के सामने, पर वही आंखें रोई उस पर यहां आके। जिसे याद करने का वक्त नहीं था, आज यादे बह चली है उसकी यहां आके। सहारे के लिए बहार हाथ मिला न मिला हो, पर कांधे सबके छोड़ गए उसे यहां आके। जो कहता था सचाई ये मुश्किल है कुबुल करना, उसी हाथ ने दफन किया उसे यहां आके। रंगमंच ये दुनिया में जीने वाला साथ छोड़ गया यहां आके, धन दौलत छोड़ आया सब वही खाली हो गया यहां आके।