मुझे फूल मत मारो by मैथिलीशरण गुप्त
मुझे फूल मत मारो, मैं अबला बाला वियोगिनी, कुछ तो दया विचारो। होकर मधु के मीत मदन, पटु, तुम कटु गरल न गारो, मुझे विकलता, तुम्हें विफलता, ठहरो, श्रम परिहारो। नही भोगनी यह मैं कोई, जो तुम जाल पसारो, बल हो तो सिन्दूर-बिन्दु यह--यह हरनेत्र निहारो! रूप-दर्प कंदर्प, तुम्हें तो मेरे पति पर वारो, लो, यह मेरी चरण-धूलि उस रति के सिर पर धारो!
करता जो प्रीत by रवीन्द्रनाथ ठाकुर
दिन पर दिन चले गए,पथ के किनारे गीतों पर गीत,अरे, रहता पसारे ।। बीतती नहीं बेला, सुर मैं उठाता । जोड़-जोड़ सपनों से उनको मैं गाता ।। दिन पर दिन जाते मैं बैठा एकाकी । जोह रहा बाट, अभी मिलना तो बाकी ।। चाहो क्या,रुकूँ नहीं, रहूँ सदा गाता । करता जो प्रीत, अरे, व्यथा वही पाता ।।
वक़्त बेवक्त by अंकित अरोरा
वक़्त बेवक्त यों मुझे याद करते हैं, मुझसे मिलने के वो फिर एक बार फरियाद करते हैं। मिल लूं जो उनसे तो गुजरे जमाने की फिर बात होगी, याद आएगा वो समाँ , फिर मोहब्बत की बात होगी। जो ' ना ' मिला उनसे तो क्या ही होगा, कुछ और कसक, मेरी उन्हें कुछ याद और होगी। ' जाओ ', नहीं मिलता आज मैं उनसे अपने एहसास कुछ रोज़ और दबा लूंगा, कुछ और दिन मैं उनके इज़हार का जवाब ना दूंगा। इंतज़ार की हद क्या है उनकी, बस कुछ रोज पहले उससे , उनके इज़हार का जवाब मैं अपने इक़रार से दूंगा।
इंतज़ार by अंकित अरोरा
मोहब्बत में वो मज़ा कहाँ जो *इंतज़ार* में आता है। *इंतज़ार* में जो मज़ा आता है वो कहाँ प्यार में आता है । आँखें गड़ाए रखते हैं उन बेजान आइनों में घंटों, चंद लम्हे ही गुज़रे हों जैसे। हर इक को *कहाँ करना* इंतेज़ार आता है? इंतेज़ार के बाद या *सिसकियां* हैं या इक *कशिश* है, ये इंतेज़ार कहाँ सबको यूँ *शुमार* आता है।
Fly In the Sky by कानू बुटानी
fly in the sky........ its a season of lovely rains hand in hand walk in love lanes
तू by विशाल राजपूत
तू करे नफरत , मैं निभाऊं मोहब्बत। तू छोड़े साथ , मैं पकडू हाथ। तू तोड़े वादे , मैं जोडू दिल। तू रुलाए रोज , मैं बनाओ अफसोस। तू जाती भी नहीं , साथ मेरे आती भी नही। तू करदे खत्म आज इसे यही ,मुझे नहीं हैं अब तेरे पे यकीन
अनहद प्रेम by शिवम द्विवेदी
वीणा के सरस्वती नाद सी तुम, समूचे विश्व में अपवाद सी तुम, कृष्ण बंसी का स्वर हो तुम्हीं, तुम्हीं धरती कि हो मन्दाकिनी, सूर्य से जैसे प्रवाहित हो विभा, तुम सौर मंडल में हो जैसे धरा, प्रेम से उत्पन्न कोई पावन पवन हो, तुम ब्रह्म का एक अलौकिक सृजन हो, वाटिका के पुष्प सम सुरभित सुगंधित, तुम प्रेम के अमरत्व करती महीमामंडित, मैं प्रशंसक अनुराग का, होता विकल जोहते विराग को, अकेलेपन से एकांत नामक गाँव में मैं जा रहा हूँ, स्पन्दन पर विराजो सखी मेरे पास आओ, हाथ थामो सखी मेरा मुझमें समाओ, तुम्हारी प्रज्ञा के शर ने करा व्याकुल हृदय मेरा, इस हृदय को मैं तुम्हें उपहार करता हूँ, ऐ सखी मैं तुमसे अनहद प्यार करता हूँ
नजरिए by श्रीयांसी नायक
नज़र है इसीलिये नज़रिए है। नज़र है तो सिर्फ उसके लौट आने का। उमरां इंतजार रहेगा, उसके फिर से मेरी और देख कर मुस्कुराने का। ज़ख्म भर जाते है उसकी बातों से, फिर भी वो कहता, 'आके मिलूंगा'। ये दो महिनों की दूरी मुश्किल है, तू साथ है तो सब हासिल है। नज़र है इसीलिये नज़रिए है...
एक शाम by सुधीर यादव
एक शाम गुज़राना चाहता हूँ बहुत कु छ बताना चाहता हूँ जो बेवज़ह की चाहत है मैंव्यक्त करना चाहता हूँ एक शाम गुज़राना चाहता हूँ कु छ तुम कहना, कु छ मैंकह ल ूँगा वो शाम तुम्हारेललए मैंचुन ल ूँगा जो ख्वाब देखा हैतुम्हारेललए थोडा तुम बुनना, थोडा मैंबुन ल ूंगा एक शाम गुज़राना चाहता हूँ बहुत कु छ बताना चाहता हूँ बस सुन लेना हाथो मेंरची मेहूंदी मेंमेरा नाम देखना चाहता हूं तुम्हारेमाूंग मेंअपनेनाम का लसन्द र देखना चाहता हूँ येजो सात जन्म के फे रेहैमैं तुम्हारेसाथ लेना चाहता हूँ एक शाम गुज़राना चाहता हूँ बहुत कु छ बताना चाहता हूँ बस सुन लेना..
तुम.. by अमन त्रिपाठी
कभी अधजगे से सोये हैं कभी ख़्वाबों में रोयें हैं, हंसाती है तेरी मुस्कान कमी तेरी रुलाती है, हमें फूलों कि चाहत है किसी ख़ुशबू में खोये हैं, सभी मालियों ने तो हैं, तोड़े फूल डालों से हमें फूलों कि चाहत है हमने माले पिरोयें हैं, हमने भी मोहब्बत में कभी यूँ,रूठकर खुदसे, हक़ीक़त और ख़्वाबों कि इस क़ुरबत को संजोये हैं।।
मन के उस पार by अमन त्रिपाठी
मेरे मन के इस पार, मेरे सोच के भीतर एक किताब है, जिसमें चार पन्ने हैं और, उम्मीद के मज़बूत धागे से तुरपाई की हुई मोटी लाल दफ़्ती पहले पन्ने पर ख़्वाहिशें हैं जैसे सब के होती हैं, ख़्वाहिशों में एक मुकाम है चंद सीढ़ियां हैं, एक दरवाज़ा है एक ताला है, और चाभियाँ कई, दूसरा पन्ना खाली है, हाथों में स्याही है, मन में ख़्वाब हैं, और कुछ लिखने की चाहत, तीसरे पन्ने को, मैंने कोरा छोड़ा है, जिसमें कभी किसी का ज़िक्र नहीं होगा, क्योंकि बाकी चीज़ों का, नया आधार मन के उस पार, और चौथा पन्ना जो किताब का अंत है, वो कई नई कहानियों की शुरुआत दफ़्ती के दायीं ओर दो शब्द हैं दोनों शब्दों में पन्नों का फासला है शुरुआत का शब्द अधूरा है पर पन्नों के फासलों से अंत पूरा है। और, मन के उस पार एक तस्वीर है कई झूठी सच्ची बातों का ज़िक्र चंद शब्द, मधुर आवाज, मासूम चेहरा प्यार और तुम।।
तुम !!❤︎ by अमन त्रिपाठी
ये कम उम्र की मोहब्बतों में क्या होगा इश्क़ होगा फ़नकारी होगी, कभी किसी की अदाऐं रास आएंगी अदाकारी होगी, ज़ुबाँ पर होंगे चंद अक्षर के कुछ फूल ख़्वाबों में किसी के नाम की फुलवारी होगी, कभी आँखों का काजल, कभी होंठो की लाली मोहब्बत में तो हर चीज़ प्यारी होगी, एक तस्वीर को कई तलक देखकर सोचेंगे, तेरे चाहने वाले दुनिया तो तेरे आँखों से हारी होगी, खिलेंगे फ़ूल फ़िज़ाओं में, "गिरेंगे" ख़ुशबू में तेरी सूरज सी चिनगारी होगी, कुछ तेरे बारे सोचेंगे"रोयेंगे" हम जैसे ग़ज़लों में "मतले" पिरोयेंगे पर, इन सबके ख़्वाबों में तेरे हुस्न से बेदारी होगी, इस इश्क़ में किसी के रूठ जाने पर क्या होगा बस,अपने ही शब्दों से मुँहमारी होगी, और, बैठेंगे साख पर कौवे "मुन्तज़िर" खबर जब तेरे मिलने की ज़ारी होगी।।
नींद by अमन त्रिपाठी
काश, किसी रोज़, ख़ूब तेज़ हवा चले धूल उड़े, मैं उड़ जाऊँ पुरानी सारी बातें भूल तेरी गलियों में फिरसे एक बार गुज़रूँ कोई फूलों की ओर आता दिखे मैं कहीं फूलों में छुप जाऊँ, रात भर जाग कर यही ख़्वाब देखता हूँ, कोई हाँथ सिरहाने रखदे तो मैं सो जाऊँ॥
dil mein kuch by अंकित अरोरा
बहुत दिनों से दिल में कुछ दबा सा था, दिल को मेरे दिल का कुछ पता ना था; वो तो बस बैठे थे मेरे नजदीक आकर इतना, वर्ना उनसे ये नजदीकियां हैं इतनी मेरी, मेरे दिल को तो ये भी पता ना था |
Bewafa by अंकित अरोरा
वो बेखौफ़ वक्त रहते रिश्ते छुड़ा गए, हम कौन हैं वो हमको इतना जता गए | हम बैठे रहे दो-राह पर पलकें बिछा बिछा, चुप-चाप वो उस राह से आखें चुरा गए |
Muhobbat by अंकित अरोरा
मेरी मोहब्बत मेरी इबादत से कम ना थी, मेरी मोहब्बत मेरी इबादत से कम ना थी| और झूठ बोलने की उनसे कोई कसम ना थी| वो तो बस यून ही कर दिया बे-रिश्ता उन्होंने हमको शायद, हमसे दूर जाने की वैसे कोई वजह ना थी|
kuch dekh liya by अंकित अरोरा
कुछ देख लिया ऐसा उम्र के इस पड़ाव में, ले गई यादें मुझे उन भूली बिसरी विद्यालय की राहों में; कुछ यादें अनकही सी दिलों में सदा बसती हैं, कुछ रिश्तों की ख्वाहिशें सदा इस दिल में खटकती हैं| यहाँ मेरा एहसास कुछ धूमिल सा था पड़ गया, इसलिए मेरे दोस्तों अंकित यहाँ कुछ यादें अपनी लिख गया|