ये प्राण मुक्ति चाहते है by यश चौहान
ये प्राण मुक्ति चाहते है ये प्राण मुक्ति मांगते हैं उसके त्रुटियों से भरे शरीर से ये प्राण निकलना चाहते है | जो कोसता है खुदको, जो मारता है खुदको जो बन चुका नशे का भंडार है जो बन चुका पाप का भागीदार है जो मानता खुद को इंसान नहीं जो बन चुका है हैवान वही || उससे ये प्राण मुक्ति चाहते है ये प्राण मुक्ति मांगते हैं उसके त्रुटियों से भरे शरीर से ये प्राण निकलना चाहते है | जो बन चूका है द्वेष व घृणा का घर जो बन चूका है ईर्ष्या का समुंदर जो मानने लगा है खुद को ईश्वर से भी ऊपर जिसके पापों का घड़ा अब चुका है भर || उससे ये प्राण मुक्ति चाहते है ये प्राण मुक्ति मांगते हैं उसके त्रुटियों से भरे शरीर से ये प्राण निकलना चाहते है | जिसके मन में बचा नहीं है अच्छाई का एक अंश जिसके भीतर के इंसान का हो चुका है विधवंश जिसके अंदर जन्म ले रहा है कलयुग का कंस || उससे ये प्राण मुक्ति चाहते है ये प्राण मुक्ति मांगते हैं उसके त्रुटियों से भरे शरीर से ये प्राण निकलना चाहते है |.....